On the occasion of World Human Rights Day, Faith Leaders come together for Gender Equality and Environmental Preservation at Parmarth Niketan, Rishikesh
Rishikesh, 10 December. The Global Interfaith WASH Alliance (GIWA) and Parmarth Niketan, Rishikesh spent the auspicious occasion of Human Rights Day with faith leaders, scholars, academicians, and artists from across different sections of society discussing how gender equality alongside environmental preservation must go hand in hand. This dialogue, that took place in Parmarth’s Satsang Garden included discussion of how addressing gender inequalities, gender based violence and related issues like child marriage were key to a sustainable, balanced and healthy society.
Pujya Swami Chidanand Saraswatiji, President of Parmarth Niketan, Dr. Sadhvi Bhagwati Saraswati, Secretary General, Global Interfaith WASH Alliance, Goswami Sushil Ji Maharaj, National Convener of All Religion Parliament of India, President, Delhi Gurudwara Bangla Sahib Sardar Paramjit Chandok, Director Brahma Kumaris Delhi, Rajyogini BK Sapna Didi alongside members of civil society organisations, educationists and scholars joined together for these discussions (see full complete list below).
Eighty four percent of the world’s population subscribe to a faith and in India this is a larger percentage. Hence, faith leaders and faith based organisations have a large role to play in behaviour change and changing societies mindsets. Hence the dialogue with faith leaders today included what are the key stereotypes and inequalities that women face and how true human rights and sustainable development goals must be led by women. It looked at scriptural references and stories that show examples of women empowerment and gender equality in faith tradition. It was discussed that GIWA would soon be releasing a toolkit in Hindi and English for Gender Equality and another one for Climate Action.
Pujya Swami Chidanand Saraswati shared, “Gender Equality not just affects women and girls who represent half our population but really the entire society because it is this half that is responsible for the other half of the population…Religion and faith have an important and powerful role in removing this gap of gender inequality from society. Both men and women are the basic pillars of the society, yet in many places women still are discriminated, oppressed and subject to violence. Gender equality is key to unity and as our Hon’ble Prime Minister Shri Narendra Modiji has declared from the ramparts of Red Fort on 15th August that Nari Shakti is pivotal in the Amrit Kaal of Bharat.”
Pujya Sadhvi Bhagawatiji shared, “It is such a beautiful beginning and there is so much work to be done. In our scriptures and in the Indian culture Nari, Shakti is the same divine feminine that is represented in the form of women and girls and it’s the same energy represented in the form of Mother Earth or Prakriti and the same energy that is referred to as Sanskriti or our spiritual cultural heritage. Hence as faith leaders we must come together for Shakti, Prakriti and Sanskriti and when we do so then we take care of the core of all human rights as well as all living rights.”
Women constitute almost half of the total population of the world, and for this reason, the widespread and far-reaching effects of gender discrimination are visible at every level of the society, so it is necessary that by bringing all religions and religious organizations on one platform, the social evils prevailing in the society can be terminated.
Participant list also included:
- Akhil Dharma Sansad Bharat, Geeta Kathpalia Ahuja ji,
- President-Draupadi Dream Trust, writer, Prof. Folk speaker Mrs. Neera Mishra,
- Founder of Rescue Foundation, Triveni Acharya,
- Professor Punjab University of Gender Studies, Dr. Kanchan Chandan,
- Professor of Folk Dance, Producer of dance dramas for social awareness, Professor Prodyut Dutta,
- Screenwriter & Scholar Mr. Mahesh Prasad Jaiswal,
- Secretary, Gurudwara Bangla Sahib Jaspreet Kaur,
- Director of Global Interfaith WASH Alliance Ganga Nandini and many scholars were present.
विश्व मानवाधिकार दिवस
परमार्थ निकेतन में विश्व मानवाधिकार दिवस के अवसर पर लैंगिक समानता पर डायलाॅग का आयोजन
लैंगिक समानता, प्रकृति और पुरूष, पर्यावरण और भारतीय संस्कृति पर धर्मगुरूओं के साथ संवाद
लैंगिक समानता पर कहीं से तो शुरू हो संवाद
परमार्थ निकेतन में विश्व मानवाधिकार दिवस के अवसर पर पूज्य संतों, धार्मिक विद्वानों और विभिन्न विश्वविद्यालयों के प्रोफेसर्स के सान्निध्य में लैंगिक समानता, प्रकृति और पुरूष तथा पर्यावरण और भारतीय संस्कृति पर ‘संवाद’ का आयोजन किया गया। विभिन्न धर्मों के धर्मगुरूओं ने लैंगिक समानता, लिंग आधारित हिंसा, बाल विवाह और पर्यावरण संरक्षण पर अपने-अपने धर्मों और धर्मशास्त्रों में उल्लेखित दिव्य संदेशों के विषय में अवगत कराया।
परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी, जीवा की अन्तर्राष्ट्रीय महासचिव डा साध्वी भगवती सरस्वती जी, भारतीय सर्व धर्म संसद के राष्ट्रीय संयोजक गोस्वामी सुशील जी महाराज, अध्यक्ष, दिल्ली गुरुद्वारा बंगला साहेब सरदार परमजीत चंडोक जी, डायरेक्टर ब्रह्माकुमारीज दिल्ली, राजयोगिनी बीके सपना दीदी जी, सचिव और विभिन्न धर्मो के धर्मगुरूओं ने वेद, गीता, महाभारत, रामायण, गुरूग्रंथ साहब आदि शास्त्रों में उल्लेखित दिव्य मंत्रों और संदेशों को अपने संवाद में शामिल किया।
ज्ञात हो कि लैंगिक आधार पर हो रही असमानता और हिंसा से मानवाधिकारों का उल्लंघन होता है इससे न केवल पीड़ित को शारीरिक, यौन, मनोवैज्ञानिक और आर्थिक नुकसान होता है बल्कि लैंगिक समानता के अभाव में समृद्ध और गरिमापूर्ण समाज का निर्माण भी नहीं किया जा सकता।
हमारा मानना है कि दुनिया के लगभग सभी धर्मों और धार्मिक परंपराओं के मूल में सद्भाव, समानता, करुणा, न्याय और सभी की गरिमा को बनाए रखने का संदेश समाहित है। दुनिया की 84 प्रतिशत आबादी धर्म पर विश्वास करती इसलिये धार्मिक आस्था के आधार पर जनसमुदाय के व्यवहार में सकारात्मक परिवर्तन सहजता से किया जा सकता है तथा समाज के भीतर व्याप्त कठोर लिंग भूमिकाओं और मानदंडों को समाप्त कर समता, समानता, सद्भावपूर्ण और अहिंसा से युक्त समाज का निर्माण किया जा सके इसलिये परमार्थ निकेतन में आज डाॅयलाग का आयोजन किया गया।
स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने कहा कि समृद्ध समाज के लिये लैंगिक असमानता एक खाई के समान है जिसे पाटना जरूरी है। समाज से लैंगिक असमानता की इस खाई को दूर करने के लिये धर्म और आस्था की महत्वपूर्ण और शक्तिशाली भूमिका है। महिला और पुरुष दोनों ही समाज के मूल आधार हैं फिर भी कई स्थानों पर घर और समाज दोनों ही स्तरों पर महिलायें शोषण, अपमान और भेदभाव से पीड़ित होती हैं।
महिलाएँ दुनिया की कुल आबादी का लगभग आधा हिस्सा हैं, और इसी कारण से लैंगिक विभेद के व्यापक और दूरगामी असर समाज के हर स्तर पर दिखायी देते हैं इसलिये जरूरी है कि हम सभी धर्मों और धार्मिक संगठनों को एक मंच पर लाकर समाज में व्याप्त सामाजिक कुरीतियों को समाप्त किया जा सके।
इस अवसर पर अखिल धर्म संसद भारत, गीता कठपालिया आहूजा जी, अध्यक्ष-द्रौपदी ड्रीम ट्रस्ट, लेखक, प्रो. लोक वक्ता श्रीमती नीरा मिश्रा, रेस्क्यू फाउंडेशन की संस्थापक त्रिवेणी आचार्य, प्रोफेसर पंजाब यूनिवर्सिटी ऑफ जेंडर स्टडीज डॉ कंचन चंदन, लोक नृत्य के प्रोफेसर, सामाजिक जागरूकता के लिए नृत्य नाटकों के निर्माता प्रोफेसर प्रोद्युत दत्ता, जायसवाल, पटकथा लेखक श्री महेश प्रसाद, सचिव, गुरुद्वारा बंगला साहेब जसप्रीत कौर, ग्लोबल इंटरफेथ वॉश एलायंस की निदेशक गंगा नंदिनी और अनेक विद्वान उपस्थित थे।