ASHA workers from Yamkeshwar Block, Paudi Garhwal District arrived at Parmarth Niketan for a two-day training programme conducted by Uttarakhand Govt.
We GIWA volunteers interacted with them and had a very interesting conversation about Routine Immunisation. Many women shared their prior experiences in working in RI, its outcome and the challenges in it.
Everybody together planted a Rudraksh tree and we provided everyone a Dettol soap and Sanitizer and requested them to support us by raising awareness about WASH.
परमार्थ निकेतन के अध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने भारत के महान पर्यावरण-चिन्तक एवं चिपको आन्दोलन के प्रमुख सूत्रधार श्री सुन्दरलाल बहुगुणा जी की जयंती पर भावभीनी श्रद्धाजंलि अर्पित करते हुये कहा कि उन्होंने हिमालय के पर्वतीय क्षेत्रों में वनों के संरक्षण के लिए अद््भुत संघर्ष किया।
परमार्थ निकेतन में आज पर्यावरण चितंक श्री सुन्दरलाल बहुगुणा जी की जयंती पर परमार्थ परिवार के सदस्यों ने आशा कार्यकर्ताओं के साथ मिलकर पौधों का रोपण किया। इस अवसर पर आशा कार्यकर्ताओं को स्वच्छता का महत्व बताते हुये साबुन व सेनेटाइजर वितरित किये।
परमार्थ निकेतन में दो दिवसीय आशा कार्यकर्ताओं का प्रशिक्षण आयोजित किया गया जिसके समापन अवसर पर ग्लोबल इंटरफेथ वाश एलायंस के प्रशिक्षकों ने आशा कार्यकर्ताओं को जीरो से पांच वर्ष तक के बच्चों के नियमित टीकाकरण के विषय में जानकारी देते हुये ’पांच साल सात बार छूटे न टीका एक भी बार’ का संकल्प कराते हुये कहा कि उत्तराखंड पहाड़ी राज्य है। पहाड़ पर रहने वालों की समस्यायें भी पहाड़ जैसी ही होती है इसलिये टीकाकरण का संदेश, टीकाकरण की जानकारी और तारीख उन तक पहुंचाना अत्यंत आवश्यक है। आशा कार्यकर्ता की पहंुच प्रत्येक घर तक होती है इसलिये उनकी भूमिका और भी महत्वपूर्ण हो जाती है। इस अवसर पर यमकेश्वर ब्लाक और पौड़ी गढ़वाल की आशा कार्यकर्ताओं ने सहभाग किया।
परमार्थ निकेेतन में ग्लोबल इंटरफेथ वाश एलायंस, जागरण पहल व रैकिट के संयुक्त तत्वाधान में संचालित वर्ल्ड टॉयलेट कॉलेज के माध्यम से आशा कार्यकर्ताओं को स्वच्छता की जानकारी प्रदान की।
ज्ञात हो कि श्री सुन्दरलाल बहुगुणा जी 1970 के दशक में चिपको आन्दोलन से जुड़े रहे और 1980 के दशक से 2004 तक वे टिहरी बाँध के निर्माण के विरुद्ध भी उन्होंने अपनी आवाज़ को बुलंद किया।
गांधीवादी श्री सुंदरलाल बहुगुणा जी ने चिपको आंदोलन जो कि एक अहिंसक आंदोलन था जो वर्ष 1973 में उत्तर प्रदेश के चमोली ज़िले (अब उत्तराखंड) में शुरू हुआ था। इस आंदोलन का नाम ‘चिपको’ ’वृक्षों के आलिंगन’ के कारण पड़ा, क्योंकि आंदोलन के दौरान ग्रामीणों द्वारा पेड़ों को गले लगाया गया तथा वृक्षों को कटने से बचाने के लिये उनके चारों और मानवीय घेरा बनाया गया। जंगलों को संरक्षित करने हेतु महिलाओं के सामूहिक एकत्रीकरण के लिये इस आंदोलन को सबसे ज्यादा याद किया जाता है। इसके माध्यम से सामाान्य जनसमुदाय को वनों के अधिकारों के बारे में जागरूक करना तथा यह समझाना था कि कैसे ज़मीनी स्तर पर सक्रियता पारिस्थितिकी और साझा प्राकृतिक संसाधनों के संबंध में नीति-निर्माण को प्रभावित किया जा है।
1970 के दशक में चिपको आंदोलन के बाद श्री बहुगुणा जी ने यह संदेश दिया कि पारिस्थितिकी और पारिस्थितिकी तंत्र अधिक महत्त्वपूर्ण हैं। उनका विचार था कि पारिस्थितिकी और अर्थव्यवस्था को एक साथ चलना चाहिये। उन्होंने पूरे हिमालयी क्षेत्र पर सभी का ध्यान आकर्षित करने के लिये 1980 के दशक की शुरुआत में 4,800 किलोमीटर की कश्मीर से कोहिमा तक की पदयात्रा की। पद्म विभूषण श्री सुन्दरलाल बहुगुणा जी का पूरा जीवन पर्यावरण को समर्पित था।
इस अवसर पर स्वामी सेवानन्द जी, रोहन, राकेश रोशन, प्रवीण कुमार और परमार्थ निकेतन के कार्यकर्ता उपस्थित रहे।