To care for the Kanwaris of the Kandwad Mela, Parmarth Niketan, the Global Interfaith WASH Alliance and the Divine Shakti Foundation – with the guidance and blessing of HH Param Pujya Swami Chidanand Saraswatiji – are hosting a wide-range of programmes and initiatives designed to care for their health and to cure any behaviours that might be interfering with their journey or with their lives. While the free Medical Camp and our clean water distribution through our Jal Mandirs address their physical needs, it is the innovative daily puppet shows that are designed to change their minds about the need for single-use plastics on their Yatra or in their lives.
Since the programs’ inauguration on 14 July, over 10,000 Kanwaris have benefitted from these services – and that’s just the first week! Our dedicated team of sevaks will continue to offer the initiatives through the Mela’s end on 13 August.
परमार्थ निकेतन द्वारा कांवड मेला में कांवडियों को प्रदान की जा रही है विभिन्न सुविधायें
कांवडियाँ ले रहे हैं पर्यावरण एवं जल संरक्षण का संकल्प
संकल्प पत्र भरकर अपनी धरती को प्रदूषित न करने की ले रहे हैं शपथ
तिरंगा झंडा अंगीकरण दिवस की हार्दिक शुभकामनायें
ऋषिकेश, 22 जुलाई। परमार्थ निकेतन नीलकंठ मार्ग शिविर में कांवडियों को निःशुल्क चिकित्सा सुविधायें, जल मन्दिर के माध्यम से स्वच्छ जल की सुविधायें, पपेट शो के माध्यम से सिंगल यूज प्लास्टिक का उपयोग न करने का प्रतिदिन संदेश प्रसारित किया जा रहा है।
14 जुलाई से परमार्थ निकेतन द्वारा ये सुविधायें निरंतर कांवड मेला में आने वाले शिवभक्तों को दी जा रही हैं। अब तक 10 हजार से अधिक कांवडियों को शिविर के माध्यम से स्वास्थ्य लाभ पहंुचाया गया और ये सुविधायें पूरे कांवड मेला के दौरान जारी रहेगी।
शिविर में आने वाले कांवडियों से पर्यावरण संरक्षण, जल संरक्षण और अपनी धरा को सिंगल यूज प्लास्टिक से मुक्त करने के लिये संकल्प पत्र भरवाये जा रहे हैं। कांवडियाँ संकल्प ले रहे हैं कि ‘‘मैं कचरे को कूड़ेदान में ही डालूंगा। मैं प्लास्टिक का प्रयोग नहीं करूँगा। अपनी आदतों में सुधार कर जल बचाने में अहम योगदान करूँगा। कांवड यात्रा की याद में पौधारोपण करूँगा। स्वच्छता का संदेश गली, गाँव, शहर में जन-जन तक फैलाऊँगा। इस संकल्पों के साथ वे अपनी यात्रा पूर्ण कर रहे हैं।
तिरंगा झंडा अंगीकरण दिवस के अवसर पर स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने अपने संदेश में कहा कि भारत की आजादी के इतिहास में 22 जुलाई का दिन बहुत ही महत्त्वपूर्ण है क्योंकि आज का दिन देश के राष्ट्रीय ध्वज से जुड़ा हुआ है। जब संविधान सभा ने तिरंगे को देश के राष्ट्रीय ध्वज के तौर पर अंगीकार किया था।
भारत का राष्ट्रध्वज तिरंगा भारत माता और भारतीयों की शान का प्रतीक है। तिरंगा हर भारतीय की शान है। हमारा राष्ट्रीय ध्वज एकता, समृद्धि और शान्ति का प्रतीक है तथा चरखा देश की प्रगति का प्रतिनिधित्व करता है। ध्वज के शीर्ष पर स्थित केसरी रंग ’साहस’ को दर्शाता है, मध्य में सफेद रंग ‘शांति और सच्चाई’ का प्रतिनिधित्व करता है एवं ध्वज के नीचे स्थित हरा रंग ‘भूमि की उर्वरता, वृद्धि और शुभ्रता’ का प्रतीक है। ध्वज में विद्यमान चरखे को 24 तीलियों से युक्त अशोक चक्र द्वारा प्रतिस्थापित किया गया। इसका उद्देश्य यह है कि गतिशीलता ही जीवन है।
भारत का इतिहास गौरवशाली एवं स्वर्णिम रहा है। भारत की क्रान्तियाँ भी शान्ति की स्थापना के लिये ही हुई हंै क्योंकि भारत का इतिहास और संस्कृति के मूल में शान्ति ही समाहित है। हमारी संस्कृति से शान्ति के संस्कारों का बोध होता है, जिसके आधार पर हम अपने आदर्शों, जीवन मूल्यों आदि का निर्धारण कर सकते हैं। भारतीय सभ्यता और संस्कृति की विशालता ‘वसुधैव कुटुंबकम्’ के पवित्र सूत्र में निहित है। वसुधैव कुटुम्बकम् अर्थात पूरा विश्व ही एक परिवार है, सर्वभूत हिते रताः तथा सर्वे भवन्तु सुखिनः सुखिनः की अवधारणा पर हमारा दृढ़ विश्वास है।
स्वामी जी ने कहा कि हमारे कास्ट्यूम और कस्टम अलग हो सकता है परन्तु हम सब एक हंै। हमारी एकता के लिये हमारे तिंरगें का महत्वपूर्ण योगदान है। आईये हम अपने तिरंगे की गरिमा को समझें और उसमें समाहित आदर्शो को अंगीकार करेें। भारत के तिरंगे के डिजाइन का श्रेय भारतीय स्वतंत्रता सेनानी पिंगली वेंकैया जी को दिया जाता है। राष्ट्रीय ध्वज तिंरगे के भाव एवं स्वरूप को नमन्।